ग़ज़ल:- अच्छे दिनों के सारे तमाशाई है
क्या खूब चर्चे हैं! क्या पज़ीराई* है!
दीवानगी है क्या! क्या मसीहाई है!
दीवानगी है क्या! क्या मसीहाई है!
आसार है के 'आँधी' चलेगी फिर से
इन हवाओं से अपनी शनासाई* है
इन हवाओं से अपनी शनासाई* है
इतिहास की पुस्तक में पढ़ेंगे बच्चे,
'सब बाप-दादाओं की मुनाफ़ाई है|'
'सब बाप-दादाओं की मुनाफ़ाई है|'
चौपाल पर पत्ते कूटते बैठे हैं
अच्छे दिनों के सारे तमाशाई है
अच्छे दिनों के सारे तमाशाई है
सच बोल देता हूँ भरी महफ़िल में
अपनी यही आदत जान पर आई है
अपनी यही आदत जान पर आई है
-- संकेत,
नई दिल्ली,
१२ अक्टुबर, २०१४
नई दिल्ली,
१२ अक्टुबर, २०१४
*पज़ीराई = आवभवत, स्वागत, reception
*शनासाई = परिचय, acquaintance
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