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ऑक्टोबर, २०१४ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

ग़ज़ल:- अच्छे दिनों के सारे तमाशाई है

क्या खूब चर्चे हैं! क्या पज़ीराई* है! दीवानगी है क्या! क्या मसीहाई है! आसार है के 'आँधी' चलेगी फिर से इन हवाओं से अपनी शनासाई* है इतिहास की पुस्तक में पढ़ेंगे बच्चे, 'सब बाप-दादाओं की मुनाफ़ाई है|' चौपाल पर पत्ते कूटते बैठे हैं अच्छे दिनों के सारे तमाशाई है सच बोल देता हूँ भरी महफ़िल में अपनी यही आदत जान पर आई है -- संकेत, नई दिल्ली, १२ अक्टुबर, २०१४ *पज़ीराई = आवभवत, स्वागत, reception *शनासाई = परिचय, acquaintance ------------------------------------------------------

विडंबन - अशी कबुतरे येती

अशी कबुतरे येती; आणिक घाण ठेवुनी जाती दोन घरांची पुण्यकमाई दहा घरांच्या खाती कपोत आला, पहिला वहिला खिड़कीमागे उभा राहिला तया मागे, येई साजणी गूटर्गूच्या साथी... दुरून येती थवे देखिले मी ग्याल्रीचे दार लोटिले धड़क मारती तरी निरंतर गंधित झाल्या भिंती पंख दोन ते हळु फ़डफ़डले खोलीभर मायेने फिरले हॉलकिचनाच्या भिंतीमधुनि लागेना मज हाती 'पुण्यवान' तो येता गाठी शिव्या पाच मोहरल्या ओठी त्या तुटल्या दातांची गाथा क्रूर कबुतरे गाती -- स्वामी संकेतानंद, १५ ऑक्टोबर, २०१३, नवी दिल्ली